भाव समाधि
समाधि
तन्मयता
अवचेतनावस्था
मूर्च्छा
बेहोशी की हालत
उपसमाधि
समाधी
Enamour
Becharm
Enamor
Captivate
Fascinate
Bewitch
By the opposition of Spirit and Mind without the free opening of this intermediate power the two natures, higher and lower, stand divided, and though there may be communication and influence or the catching up of the lower into the higher in a sort of luminous or ecstatic trance, there cannot be a full and perfect transfiguration of the lower nature.
जबतक आत्मा और मन को जोड़नेवाली यह मध्यवर्ती शक्ति मुक्त रूप से नहीं खुल जाती तबतक इनके परस्पर - विरोध के कारण उच्चतर और निम्नतर ये दोनों प्रकृतियां एक - दूसरी से पृथक् रहती हैं, और यद्यपि उच्चतर भूमिका से निम्नतर को सन्देश प्रापत हो सकता है तथा इसपर उसका प्रभाव भी पड़ सकता है अथवा एक प्रकार की ज्योतिर्मय या आनन्दमग्र समाधि में निम्नतर प्रकृति उठकर उच्चतर के अधिकार में आ सकती है तथापि इससे निम्नतर प्रकृति का पूर्ण ओर सर्वांगीण रूपान्तर नहीं हो सकता ।
But these things which are exceptional to the waking mentality, difficult and to be perceived only by the possession of a special power or else after assiduous training, are natural to the dream - state of trance consciousness in which the subliminal mind is free.
ये चीजें जाग्रत् मन के लिये अपवाद - रूप एवं दुष्प्राय हैं तथा इन्हें एक विशिष्ट शक्ति को अधिगत करके या फिर श्रमसाध्य अभ्यास के द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है, पर समाधि - चेतना की स्वप्नावस्था के लिये ये सहज - स्वाभाविके हैं क्योंकि उसमें प्रच्छन्न मन स्वतंत्र होता है ।
The description in Mahabharath takes place when hermit Vyasa goes on penance inside divine cave in the peak of Himalaya where in state of trance attention he recites mentally Mahabharath beginning to end.
महाभारत में ऐसा वर्णन आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली ।
But still there are certain heights of spiritual and psychic experience of which the direct as opposed to a reflecting experience can only be acquired deeply and in its fullness by means of the Yogic trance.
तथापि आध्यात्मिक एवं आन्तरात्मिक अनुभव के कुछ ऐसे शिखर भी हैं जिनका बिम्बग्राही नहीं बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव गहराई के साथ तथा पूर्ण रूप में योगसमाधि के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है ।
It was in the house of Murari that Chaitanya first went into a trance.
मुरारी के ही घर में चैतन्य पहली बार भाव - समाधि में गये थे ।
The mystic trance, to which Kabir refers again and again, is some hing of this divine madness.
कबीर बार - बार जिस अनमनी अवस्था की ओर संकेत करते हैं, वह रहस्यवादियों की दैवी उन्माद की अवस्था है ।
For this reason the Raja and other systems of Yoga give a supreme importance to the state of Samadhi or Yogic trance in which the mind withdraws not only from its ordinary interests and preoccupations, but first from all consciousness of outward act and sense and being and then from all consciousness of inward mental activities.
इसी कारण राजयोग तथा कुछ अन्य योगप्रणालियां योग - समाधि की अवस्था को परम महत्त्व प्रदान करती हैं जिसमें मन अपने साधारण प्रिय विषयों और कार्यों से ही पीछे नहीं हट जाता, बल्कि पहले तो बाह्य कर्म और बोध एवं अस्तित्व का भान करनेवाली समस्त चेतना से और फिर आभ्यन्तर मानसिक क्रियाओविषयक समस्त चेतना से भी पीछे हट जाता है ।
For millions it is an eternal vigil or an eternal trance.
करोड़ों के लिए वह एक आंतरिक वीक्षा या अनंत आत्मविस्मृति है ।
Fortunately the educated class seems to be waking up from its trance.
... सौभाग्य से शिक्षित वर्ग अपनी मूर्च्छा से जागते दिखाई दे रहे है ।
There are said to be supreme states of trance in which the soul persisting for too long a time cannot return ; for it loses its hold on the cord which binds it to the consciousness of life, and the body is left, maintained indeed in its set position, not dead by dissolution, but incapable of recovering the ensouled life which had inhabited it.
कहा जाता है कि समाधि की कुछ ऐसी परमोच्च अवस्थाएं भी हैं जिनमें आत्मा अत्यन्त दीर्घकालतक स्थित रहने पर फिर वापस नहीं आ सकती ; क्योंकि वह उससूत्र पर जो उसे जीवन की चेतना के साथ बांधे रखता है अपना अधिकार खो बैठती है, और शरीर छूट जाता है, निःसन्देह, वह अपनी उसी स्थिति में सुरक्षित रहता है जिसमें उसे समाधि लगाते समय स्थिर किया गया था, विघटन के द्वारा मृत्यु को नहीं प्राप्त होता, परजो आत्मायुक्त प्राण उसके अन्दर अधिष्ठित था उसे वह पुनः प्राप्त नहीं कर सकता ।