Meaning of Inward in Hindi - हिंदी में मतलब

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Ayush Rastogi
Mar 08, 2020   •  4 views
  • भीतरी

  • अन्दरूनी

  • भीतर की ओर

  • अंदरूनी

  • आवक

  • अपनी ओर

Synonyms of "Inward"

Antonyms of "Inward"

"Inward" शब्द का वाक्य में प्रयोग

  • The average human being even now is in his inward existence as crude and undeveloped as was the bygone primitive man in his outward life.
    औसत मानव प्राणी आज भी अपनी आन्तरिक सत्ता में उतना ही असंस्कृत और अविकसित है जिना कि पुरातन और आदिम मनुष्य अपने बाह्म जीवन में था ।

  • For otherwise we may possess it, as many do, in the elevated condition or in the inward Samadhi, but we shall lose our hold of it when we awake or descend into the contacts of the world ; and this truncated possession is not the aim of an integral Yoga.
    क्योंकि, अन्यथा उनके साधकों की भांति हम इसे एक उच्च भूमिका या आन्तरिक समाधिक में तो प्राप्त कर सकते हैं, पर जब हम जागरित अवस्था में पहुंचेगे या नीचे उतरकर जगत् के सम्पर्कों में आयेंगे तो हम उस भूमिका पर अपना अधिकार खो बैठेंगे ; और यह पंगु उपलब्धि पूर्णयोग का लक्ष्य नहीं है ।

  • Renounce outward sins and the inward ones. Indeed those who commit sins shall be requited for what they used to commit.
    ज़ाहिरी और बातिनी गुनाह को छोड़ दो जो लोग गुनाह करते हैं उन्हें अपने आमाल का अनक़रीब ही बदला दिया जाएगा

  • Again our renunciation must obviously be an inward renunciation ; especially and above all, a renunciation of attachment and the craving of desire in the senses and the heart, of self - will in the thought and action and of egoism in the centre of the consciousness.
    और फिर हमारा त्याग, स्पष्ट ही, एक आन्तरिक त्याग होना चाहिये ; विशेषतया और सबसे बढ़कर, वह इन तीन चीजों का त्याग होना चाहियेइन्द्रियों और ह्दय में से आसक्ति तथा कामना - लालसा का, विचार और कर्म में से अंहतापूर्ण स्वेच्छा का और चेतना के केंद्र में से अंहभाव का ।

  • But if all works are to be done with the same forms and on the same lines as they are now done in the Ignorance, our gain is only inward and our life is in danger of becoming the dubious and ambiguous formula of an inner Light doing the works of an outer Twilight, the perfect Spirit expressing itself in a mould of imperfection foreign to its own divine nature.
    परंतु यदि सभी कर्म वैसे ही आकार - प्रकार के साथ और वैसी ही पद्धति के अनुसार करने होंगे जैसे वे अब अज्ञान में किये जाते हैं, तो हमारी प्राप्ति केवल आन्तरिक होगी और इस बात का भी भय रहेगा कि कहीं हमारा जीवन बाह्य क्षीण ज्योति के कार्यों में लगी अन्तर्ज्योति का एक संदिग्ध ओर अस्पष्ट सूत्र ही न बन जाय ओर परिपूर्ण आत्मा अपनी दिव्य प्रकृति से भिन्न या विजातीय अपूर्णता के सांचे में ही अपने - आपको प्रकट न करती रहे ।

  • Account relating to inward transaction which have been settled.
    लेखे जो आने वाले माल के निपटान से संबंधित हो ।

  • The procedure for funds transfer / inward remittance is simple.
    निधि के अंतरण / आवक धन - प्रेषण के लिए कार्यविधि सरल है ।

  • The Upanishad tells us that the Self - existent has so set the doors of the soul that they turn outwards and most men look outward into the appearances of things ; only the rare soul that is ripe for a calm thought and steady wisdom turns its eye inward, sees the Self and attains to immortality.
    उपनिषद् हमें बताती है कि स्वयंभू ने अन्तरात्मा के द्वार इस प्रकार बनाये हैं कि वे बाहर की ओर खुलते हैं और अधिकतर लोग बाहर की ओर, पदार्थों के बाह्य रूपों पर ही दृष्टि डालते हैं ; कोई विरली ही आतमा जो शान्त विचार एवं धीर - स्थिर ज्ञान के लिये परिपक्व होती है, अपनी दृष्टि अन्दर की ओर फेरती है, परम आत्मा के दर्शन करती है और अमृत - पद लाभ करती है ।

  • The shipping company has to maintain a carraige inward and carriage outward record.
    नौपरिवहन कंपनी को आवक माल भाड़े और जावक माल भाड़े का रिकार्ड रखना पड़ता है ।

  • The extreme solution insisted on by the world - shunning ascetic or the inward - turned ecstatical and self - oblivious mystic is evidently foreign to the purpose of an integral Yoga, for if we are to realise the Divine in the world, it cannot be done by leaving aside the world - action and action itself altogether.
    संसारत्याग्री समाधान पर आग्रह करते हैं वह स्पष्ट ही पूर्णयोग के उद्देश्य के प्रतिकूल है ; क्योंकि यदि हमें जगत में भगवान् को उपलब्ध करनाहै तो यह जगत् - व्यवहार तथा स्वयं कर्म को सर्वथा एक ओर तजकर नहीं किया जा सकता ।

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