15 अगस्त 1947 को देश आजादी मिली थी, इसी खुशी इस दिन हम सभी स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। स्वतंत्रता दिव का उत्सव कई रूपों जैसे, झाकी परेड, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भाषण आदि में मनाया जाता है। लेकिन इस उत्सव में तिरंगा ही एक ऐसी चीज है जो इस उत्सव को पहचान दिलाती है।
अँग्रेजों से पहले भारत पर मुगलों का शासन था और उन्होंने अपने राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए हमारी धरती का उपयोग किया। सन् 1600 में जब अँग्रेजों ने व्यापार के उद्देश्य से भारत में प्रवेश किया था तो मुगल सम्राट को इसका अंदेशा भी नहीं था कि ये अँग्रेज व्यापार के बहाने उन्हें उनके राज्य से बेदखल कर देंगे। व्यापार की आड़ में देश पर अपना अधिकार जमाने की रणनीति धीरे-धीरे कारगर हुई।एक छोटी सी कम्पनी इतनी शक्तिशाली कैसे हो गई कि हज़ारों मील दूर किसी देश में करोड़ों लोगों की ज़िन्दगी और मौत पर हावी हो जाए?
इसके लिए हमें इतिहास के कुछ और पन्ने पलटने होंगे।
1498 में परतगेज़ी मुहिम जो वास्कोडिगामा ने अफ़्रीका के दक्षिणी कोने से रास्ते ढूंढ कर भारत को समुद्री रास्ते के ज़रिए यूरोप से जोड़ दिया था। आने वाले दशकों के दौरान धौंस, धमकी और दंगा-फ़साद का इस्तेमाल करके परतगेज़ी बहरे-ए-हिन्द के तमाम व्यापारों पर क़ाबिज़ हो गए और देखते ही देखते पुर्तगाल की क़िस्मत का सूरज आधे आसमान पर जगमगाने लगा l
मुग़लों की तरफ़ से आज्ञा मिलने के बाद अंग्रेज़ों ने भारत के विभिन्न तटीय शहरों में एक के बाद एक अपने व्यापारिक अड्डे स्थापित करने शुरू कर दिए, जिन्हें फैक्ट्रियां कहा जाता था। इन फैक्ट्रियों से उन्होंने मसालों, रेशम और दूसरी चीज़ों का व्यापार शुरू कर दिया जिसमें उन्हें ज़बरदस्त फ़ायदा तो होता रहा, लेकिन जल्द ही मामला बस व्यापार से आगे बढ़ गया।
जब कम्पनी की सैन्य और आर्थिक हालत मज़बूत हुई तो इसके अधिकारी स्थानीय रियासतों के आपसी लड़ाई झगड़ों में शामिल होने लगे। किसी राजा को सिपाहियों के दस्ते भिजवा दिए, किसी नवाब को अपने दुश्मन नीचे करने के लिए तोपें दे दीं, तो किसी को सख्त ज़रूरत के समय पैसा उधार दे दिया। इस जोड़-तोड़ के ज़रिए उन्होंने धीरे-धीरे अपने पंजे तटीय इलाक़ों से दूर तक फैला दिए।
अब इस सवाल की तरफ़ आते हैं कि अंग्रेज़ों अंग्रेज़ों के दो सौ साल के शोषण ने भारत को कितना नुक़सान पहुंचाया।
इस सिलसिले में विभिन्न लोगों ने विभिन्न अंदाज़े लगाने की कोशिश की है। इनमें से ज़्यादा प्रशंसनीय अनुमान अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ और पत्रकार मेहनाज़ मर्चेन्ट की रिसर्च है। इनके मुताबिक़ 1757 से लेकर 1947 तक अंग्रेज़ों के हाथों भारत को पहुंचने वाले आर्थिक नुक़सान की कुल रक़म 2015 के फ़ॉरेन एक्सचेंज के हिसाब से 30 खरब डॉलर बनती है।
ब्रिटिश राज गोवा और पुदुचेरी जैसे अपवादों को छोड़कर वर्तमान समय के लगभग सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तक विस्तृत था।
भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लुईस माउंटबेटन को ब्रिटिश संसद ने 30 जून 1948 तक भारत में सत्ता-हस्तांतरण का दायित्व सौंपा था। सी गोपालचारी के अमर शब्दों में कहें तो अगर माउंटबेटन ने 30 जून 1948 तक इंतजार किया होता तो उनके पास हस्तांतरित करने के लिए कोई सत्ता नहीं बचती। इसलिए माउंटबेटन ने अगस्त 1947 में ही ये दायित्व पूरा कर दिया। माउंटेबेटन का दावा था कि सत्ता-हस्तांतरण पहले करने से खून-खराबा रोका जा सकता है। हालांकि इतिहास ने माउंटबेटन को गलत साबित किया। बाद में माउंटबेटन ने यह कहकर अपना बचाव किया कि “जहां भी औपनिवेशिक शासन खत्म हुआ है, वहीं खून-खराबा हुआ है। ये इसकी कीमत है जो आपको चुकानी पड़ती है।”
माउंटबेटन के भेजे सूचनाओं के आधार पर ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस में इंडियन इंडिपेंडेंस बिल चार जुलाई 1947 को पेश किया गया। भारत को आजादी देने वाला ये विधेयक एक पखवाड़े में ही ब्रिटिश संसद में पारित हो गया। इस विधेयक के अनुसार 15 अगस्त 1947 को भारत में ब्रिटिश राज समाप्त होना तय हुआ। विधेयक के अनुसार इसके बाद भारत और पाकिस्तान नामक दो डोमिनियन स्टेट (स्वतंत्र-उपनिवेश) बनने तय हुए जिन्होंने ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के तहत रहना स्वीकार किया।
ब्रिटिश हुकूमत ने भारत की 500 से ज्यादा रियासतों का भविष्य भी नए देशों पर छोड़ दिया था। इन रियासतों को भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनना था। कई रियासतें 15 अगस्त 1947 से पहले ही भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बन गई थीं लेकिन कुछ रियासतें आजादी के बाद तक दोनों में से किसी देश में नहीं शामिल हुई थीं। जम्मू-कश्मीर, जोधपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और त्रावणकोर की रिसायतें आजादी के बाद देश का हिस्सा बनीं।
15 अगस्त 1947 को सुबह 11:00 बजे संघटक सभा ने भारत की स्वतंत्रता का समारोह आरंभ किया, जिसमें अधिकारों का हस्तांतरण किया गया। जैसे ही मध्यरात्रि की घड़ी आई भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की और एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरूबने।।