झारखंड की गुप्तकाशी:- मलूटी

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Ajay Kr Layak
Aug 06, 2019   •  20 views

ये सफर है दुमका जिले के एक मलूटी नामक गाँव की। हालाँकि यह एक गाँव है किंतु इसकी ऐतिहासिक मान्यता बहुत है। इस गाँव को अर्थात मलूटी को " मंदिरों का नगर" कहा जाता है। तो आइए इस अनोखे जगह के यात्रा का वर्णन प्रारंभ करते हैं।

15 अक्टूबर 2018 , इस दिन की सुबह को कैसे भूल सकता हूँ। मैं और मेरे तीन मित्र मलूटी घूमने कानिर्णय किया। इस दिन हमारा सवेरा सूर्योदय से पूर्व ही हो चुका था क्योंकि ये दोस्तो के साथ पहला सफर जो था। कहीं हमारी बस न छूठ जाये इसलिए हम चारों मित्र हड़बड़ी मे बस पड़ाव पहुँचते हैं और सुबह की पहली बस से चार घंटे की लंबी सफर के पश्चात हम उस अलेकिक धरती पर अपना कदम रखते हैं।

मलूटी की धरती पर कदम रखते ही धीमी-धीमी खुशबूदार हवा चलने लगती है।ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मलूटी हमारा खुशियों से स्वागत कर रही हो।फिर धीरे धीरे हम गाँव की ओर आगे बढ़ते हैं और वहाँ के कुछ स्थानीय निवासियों से हमारी मुलाक़ात होती हैं। उनमें से एक प्रणब नामक व्यक्ति से हमारी दोस्ती होती है।और फिर हमें वह उस स्थान का भ्रमण कराने का निर्णय लेता है।वह एक बंगाली परिवार से था । वह हमें बतलाता है कि यहाँ के अधिकतर परिवार बंगाली समुदाय से है।वहाँ के लोगों का रीती रिवाज, पहनावा ,बातचित का तौर तरीका काफी मनमोहक था। चुकी प्रणब बँगाली था और वह हिन्दी नहीं बोल पाता था, जैसे वह हमलोगो से एक बार नास्ते के लिये पूछता है" ओ दादा, जोलखबार (नाश्ता) कोरबे की...?" किंतु उसकी हिन्दी-बांग्ला भाषा का मिश्रण हमारा दिल जीत लेती हैं। बातों बातों के सिलसिले मे हम गाँव के अंदर प्रवेश कर चुके होते हैं। हम सभी के मन मे यह उत्सुकता थी जानने को कि आखिर इसे "मंदिरों की नगरी" क्यों कहा जाता है। परंतु जैसे जैसे अंदर की ओर बढ़ते हैं तो हमे पता चलता है कि ये भारत का एक ऐसा गाँव है जहाँ घरों से अधिक मंदिरो की संख्या है। हमसभी यह देख कर ढंग रह जाते हैं कि यहाँ कोई एक दो नहीं बल्कि पूरे 108 मंदिर है। संख्या मे माला के मनकोंके बराबर इन मंदिरों वाले गाँव को देखकर हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

प्रणव हमें बताता है कि यहाँ प्रत्येक मंदिर की एक अलग विशेषता है तथा अपनी मान्यता है। सभी मंदिर एक विशेष प्रकार के ईंटो से निर्मित है। मंदिरों के दीवारों पर की गई कलाकीर्तिया हमारे ध्यान को आकर्षित करने पर विवश कर देती है। इन दीवारों पर टेराकोटा से निर्मित टाइल्स लगे थे जिनपर रामायण और महाभारत काल के चित्रण के साथ साथ नोका विहार, बंधूकधारी, नृत्यकला का चित्रण है। मंदिरों की पाषाण मूर्तियां, उनपर की गई बारीक़ कलाकीर्तिया देखकर हम सभी मानव हस्तकला की बस तारीफ़े किये जा रहे थे। फिर प्रणब हमें कुछ ऐसे रहस्यों से रु ब रु कराता है जिससे हम चारों हैरान हो जाते हैं। वह बात यह थी कि यहां जितनी भी मंदिरे थी इसका निर्माण किसी राजा महाराजा ने नहीं बल्कि एक साधारण किसान ने किया था। अंततः हमलोग गोधूलि बेला होते होते पुरे मलूटी की भर्मण कर चुके थे।पूरे भर्मण के पश्चात हम सभी थक चुके थे। फिर हम सभी प्रणब के घर उसके साथ जाते हैं और वहाँ हमे बंगाली परंपरा के कुछ पारंपरिक व्यन्जन खाने को मिलता है जैसे:- लुची, कोषा मांसो, आलु पोस्तु, और चमचम नामक व्यंजन मिलता हैं। और अब बारी थी वापस घर की ओर अग्रसर होने को। यह यात्रा हमारे मन मेमलूटी की एक अमिट छाप छोड़ गयी ।

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