समय चला, पर कैसे चला... पता ही नहीं चला...

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Shree
Jul 25, 2019   •  0 views

ज़िन्दगी की आपाधापी में,

कब निकली उम्र हमारी,यारो

*पता ही नहीं चला।*

कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे,

कब कंधे तक आ गए,

*पता ही नहीं चला।*

किराये के घर से

शुरू हुआ था सफर अपना

कब अपने घर तक आ गए,

*पता ही नहीं चला।*

साइकिल के

पैडल मारते हुए,

हांफते थे उस वक़्त,

कब से हम,

कारों में घूमने लगे हैं,

*पता ही नहीं चला।*

कभी थे जिम्मेदारी

हम माँ बाप की,

कब बच्चों के लिए

हुए जिम्मेदार हम,

*पता ही नहीं चला।*

एक दौर था जब

दिन में भी बेखबर सो जाते थे,

कब रातों की उड़ गई नींद,

*पता ही नहीं चला।*

जिन काले घने

बालों पर इतराते थे कभी हम,

कब सफेद होना शुरू कर दिया,

*पता ही नहीं चला।*

दर दर भटके थे,

नौकरी की खातिर,

कब रिटायर होने का समय आ गया

*पता ही नहीं चला।*

बच्चों के लिए

कमाने, बचाने में

इतने मशगूल हुए हम,

कब बच्चे हमसे हुए दूर,

*पता ही नहीं चला।*

भरे पूरे परिवार से

सीना चौड़ा रखते थे हम,

उन सब का साथ छूट गया, कब परिवार हमी दो पर सिमट गया।

*पता ही नहीं चला*

अब सोच रहे थे कुछ अपने लिए भी कुछ करे पर

शरीर साथ देना बंद कर दिया ,

पता ही नही चला !!

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