जो भी था कहा उसने, सब निशानी हो गयी
कभी जो याद थी मेरी वो अब कहानी हो गयी।
बड़ी मज़बूत बनती थी वो अक्सर सामने मेरे
ज़रा सा छू लिया मैंने पिघल कर पानी हो गयी।
उसके अंदाज़ पे मुझे ज़रा हैरानी हो गयी
मुबारक़ लिखकर देती थी, वो अब जुबानी हो गयी
मैं तो कब से था दीवाना ये तो वो जानती ही थी
पता चला कि अब वो भी मेरी दीवानी हो गयी।
शुभम पाठक