बरसों से ढूंढ रहा था मैं, न जाने वो कहाँ गए
भूलने ही वाला था उन्हें, कि लौट कर वो आ गए।
कुछ दिनों से न जाने क्यों, बेचैनी सी रहती थी
इन्तेज़ार था कि वो आयेंगे, वो आये,और आ गए।
इस उतरे हुए चेहरे की रंगत बदल जब जाये
न देखो उनको फिर भी तुम, ये मानो कि वो आ गए।
पल भर के लिए आये थे, बस हाल जानने को
ग़र फ़िर से जाना ही था तो जाने क्यों वो आ गए।
शुभम पाठक