बदल जब लोग जाते हैं, सदाएं तक नहीं देते
भले ही बुझ जाए दीपक,हवायें तक नहीं देते।
बुढ़ापे में था जिन माँ बाप को बच्चों का सहारा
वो सब कुछ भूल जाते हैं, दवायें तक नही देते।
इक वो माँ बाप हैं जो बचपन से हैं साथ देते रहे
इक वो औलाद हैं जो अब वफ़ाएं तक नही देते।
लेक़िन माँ बाप तो जैसे थे वैसे ही अभी भी है
हों बच्चे लाख गलत फिर भी सजाएं तक नही दते।
शुभम पाठक