हम आते भी तो क्या आते जो आते बेपरवाह आते
तुम ऐसे बदली-बदली थी हम लाते भी तो क्या लाते
यूँ पागलपंथी करके भी हमे मिलता भी तो क्या मिलता
हमें चाहत थी उन्हें नफरत थी हम पाते भी तो क्या पाते।
शुभम पाठक