कुछ बन जाऊँ फिर इक बारी आ जाना तुम जीवन में
कह दूँगा फ़िरसे तुम से सब जो भी है मेरे मन मे।
वो मेरा तुमको मेसेज करना और फिर कुछ न कहना
वो सब हैं बातें याद आती जो बोली थी उपवन में।
तुम मिलोगी वैसे ही मुझको है ये है विश्वास मेरा
मिलते हैं जैसे जंगल मे बिछड़े पक्षी सावन में।
शुभम पाठक