एक हद होती है नफरत की उस हद को मत तुम पार करो
ग़र लड़ना है तो आ जाओ यूँ छुप करके मत वार करो।
हम क्या हैं, आओ बतलाएं फ़िरसे मैदान-ए-जंग में
तुम मासूमों पर कमजोरों पर यूँ न अत्याचार करो।
आओ मिलकर अब अमन चैन से रहते हैं हम सब
मसले कर लो हल आपस में, आतंक का न प्रचार करो।
हर बार हो लड़ते मरते भी न जाने किन बातों पर
नफऱत से नही है मिलता कुछ इस बात को तुम स्वीकार करो।
शुभम पाठक