लोग.....

कुछ रहे अलग कुछ रहे जुदा

कुछ रहे यहीं कुछ बने हवा

कुछ साथ रहे कुछ याद रहे

कुछ हमसे जलकर हुए ख़फा।

कुछ अभी मिले कुछ कभी मिले

कुछ ग़र्ज लगी बस तभी मिले

कुछ हासिल करते देख मुझे

कुछ-कुछ करके फिर सभी मिले।

कुछ ने कहा कुछ ने सुना

कुछ ने किया मुझे अनसुना

कुछ ने मुझे जाना पहले

कुछ ने मुझे बस तब सुना।

कुछ गलती करके सम्भल गए

कुछ बर्फ़ के जैसे पिघल गए।

कुछ अभी भी हैं पत्थर जैसे

कुछ वक़्त के साथ में बदल गए।

शुभम पाठक

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