ये सोच के डर सा लगता है...

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Shubham Pathak
Aug 26, 2020   •  21 views

ये सोच के डर सा लगता है, कि माँ के बिन क्या होगा,

न रंग बिरंगे पल होंगें, सब कुछ सूना सूना होगा।

बस रह जायेंगी यादें वो मेरे घर के दीवारों में

सब कुछ बदला-2 होगा और खाली मेरा मकाँ होगा।

वो बातें भी याद आयेंगी वो माँ भी याद आएगी

घर के हर ज़र्रे-ज़र्रे में छूटा उसका निशाँ होगा।

न पहले जैसा घर होगा और न ही कुछ नया होगा

वक्त तो चलता जाएगा पर सब कुछ वहीं रुका होगा।

सब चीज़ कहीं बिखरी होगी कोई न ढूंढ के तब देगा

माँ के बिन क्या होती दुनिया, तब जाके कहीं पता होगा।

शुभम पाठक

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