मन में लाख ग़मों का पहरा है
पर सामने माँ का चेहरा है
तू दुःखी न हो मेरे बेटे
वो जैसे ये मुझे कह रहा है।
ये दर्द भरे दिन कट जाएंगे
दुःखो के बादल छट जाएंगे
जल्दी मिलेगी मंझिल तुझको
जो नजर गड़ाये रह रहा है।
बस रोना मत तू अब कभी
वरना हसेंगे तुझ पर सभी
जल्दी मिलेंगी ख़ुशियाँ तुझे
जो मन लगा के तू ठहरा है।
तू बन हिमालय सा कठोर
न चले किसी का तुझपर जोर
रोकेगा कौन उस धारा को
जो तीव्र प्रवाह से बह रहा है।
शुभम पाठक