वो जो कर बैठा है , उसकी कभी सफ़ाई न दे
बस इतना कर कि अब मुझको कभी दिखाई न दे।
बड़े प्यार से लगाया था मरहम जो तूने जख्मों पर
दुआ है अब किसी दुश्मन को भी, दवाई न दे।
भरोसा तोड़ते हो गर किसी अपने का धोखे से
कसम तुझको है फिर रिश्तों की तू दुहाई न दे।
बिछड़कर टूट जाता है यहाँ पत्थर सा दिल भी
मेरे खुदा कभी किसी को तू जुदाई न दे।
ये ख्वाइश थी कि बस सुनता रहूँ आवाज़ वो तेरी
ये चाहत है कि वो खनखन भी अब सुनाई न दे।
शुभम पाठक