तेरी चाह में मुझे मर जाना आ गया
दुःखो का बोझ उठाना आ गया
जिसे शायरी करने का कभी शौख ही न था
तेरी याद में कलम चलाना आ गया।
अब रूठे हुए लोगों को मनाना आ गया
आम इंसान को खास बनाना आ गया
तेरे चेहरे की वो हँसी उफ्फ्फ क्या ग़ज़ब ढा गयी
बुड्ढों को अपनी उम्र पर पछताना आ गया।
तुझे देखकर नजरें मिलाना आ गया
हर रोज मिलने का फ़िर बहाना आ गया
तूने पलट के तो उस रोज़ सिर्फ मुझे देखा था
पर तेरेे पीछे तो पूरा जमाना आ गया।
शुभम पाठक