बड़े दिन से था जो मन मे मेरे इजहार करने को
बस दिन महीना यही था वो बात करने को
हर बार की तरह ही मैं, इस बार रह गया
एक और फ़रवरी भी फिर बेकार हो गयी
शुभम पाठक

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