अक्सर उठ जाता था मैं...

profile
Shubham Pathak
Aug 26, 2020   •  0 views

अक्सर उठ जाता था मैं, सहर से पहले

कि अब तो नींद ही नहीं आती, फ़जर से पहले।

मैं भी आपके ही जैसा इंसां था कभी

मुख़्तलिफ़ बिल्कुल भी न था, हिज्र से पहले।

बाद-ए-सबा के फिर वैसे तस्कीन न दिखा

मिला सुकूँ न कहीं रूह को शज़र से पहले।

आफ़ताब के ढ़लने से पहले ही मैं आ जाता

पर रस्ते बड़े कठिन मिले, शहर से पहले।

आकर मैदान-ए-जंग में तुम एक बार देखो

मंज़िल बड़ी आसां लगती,सफ़र के पहले

शुभम पाठक

सहर-सुबह, फ़जर-सुबह

मुख़्तलिफ़-अलग, हिज्र-बिछड़ना

शज़र- पेड़, आफ़ताब-सूरज

0



  0