नजरअंदाज करने का अंदाज कुछ यूं रहा उनका
कि क़त्ल भी किया और पलट के देखा तक नहीं।

बचाने को तो बचा सकता था मैं, तब भी
पर मरने दिया खुद को और रोका तक नही।

अन्जाम ए वफ़ा क्या होगी ये क्या पता था
मोहब्बत करने से पहले कुछ सोचा तक नही।

मानता हूं मोहब्ब्त की बीमारी कुछ अजीब होती है
पर ऐसी हुई कि किसी ने हाल भी, पूछा तक नही।
शुभम पाठक

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