सुबह के निकले घर शाम पर आ गए
अपने आगाज़ से पहले वो अंजाम पर आ गए।
घर की जिम्मेदारी का बोझ कुछ यूं पड़ा उनपर
की खेलने की उम्र में बच्चे काम पर आ गए।
जाति के भेद-भाव ने कुछ यूँ पिछड़ा बना दिया
की जाति छोड़कर अब वो सिर्फ नाम पर आ गए।
जो खरीदा करते थे कभी बिना तोल मोल कुछ भी
ज़रा समय क्या गिरा, किलो के दाम पर आ गए।
आलसी थे जो लोग वक्त पर टालते रहे सबकुछ
अब असफल होकर आज वो जाम पर आ गए।
शुभम पाठक