न जाने अब कुछ अच्छा नही लगता
इस छोटी सी दुनिया में कोई सच्चा नही लगता
न हँसने को मन करता है ना बात करने का
बड़ा हो गया हूं शायद, अब बच्चा नही लगता।
अब चुपचाप से ही रहने का मन करता है
अपने आप से ही बात करने का मन करता है
पहले हंसता बहुत था,हंसाता भी
अब गुमनाम सा रहने को मन करता है।
शुभम पाठक