बिना इबरत के ही...

profile
Shubham Pathak
Aug 26, 2020   •  0 views

बिना इबरत के ही ख़िताब मिले, ये कैसे

बिना पूछे ही अब जवाब मिले, ये कैसे

बदल रहा है ज़माना ये तो हम मान लेते हैं

पर हर ज़ुबान पर तेज़ाब मिले, ये कैसे

नजऱ कुछ और आता असल कुछ और होता है

हर इक चेहरे पर अब नक़ाब मिले, ये कैसे

मिस्ल-ए-गुफ़्तगू से तो, इतना हम जानते ही हैं

इल्म के वास्ते तुम्हारे घर क़िताब मिले, ये कैसे

बेईमानी के इस दौर में बेईमानो के बीच,

मुसव्विर को उसके फ़न का हिसाब मिले, ये कैसे

शुभम पाठक

इबरत-सबक

मिस्ल-ए-गुफ़्तुगू-जानी पहचानी बात

इल्म-ज्ञान

मुसव्विर-कलाकार

फ़न-कला

0



  0