लड़ लो झगड़ लो मगर छोड़ के क्यों जा रहे हो
क्या यही किया था वादा जो तुम निभा रहे हो
ग़ैर को याद करते हो तुम मुझे उससे शिकवा नहीं
पर किसी और के लिए तुम मुझे क्यों भुला रहे हो।
किसी और का नाम अपने जुबाँ पर क्यो ला रहे हो
मुझे उसके बारे में आखिर क्यो बता रहे हो
एक जलन सी होती है मन मे मेरे, ये सच है
इस क़दर अब आखिर मुझे क्यों सता रहे हो ।
धीरे-2 अब तुम किसी और के होते जा रहे हो
जो सच है उसे मुझसे क्यो छिपा रहे हो
पहले तो बड़े मासूम बनते थे तुम सबके सामने
अब अपना असली रंग भला क्यों दिखा रहे हो।
शुभम पाठक