"अल्लाह" का वास्ता, "इस्लाम" का रास्ता!

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Nishant Jaiswal
Jul 01, 2019   •  26 views

इस देश का संविधान अपने नागरिकों को अपनी इच्छा के अनुसार अपना करियर चुनने की आजादी देता है, फिर चाहे देश का नागरिक हिन्दू हो या मुसलमान, पुरुष हो या महिला।

30 जून 2019 को बॉलीवुड की ' दंगल गर्ल' के नाम से मशहूर अभिनेत्री जायरा वसीम ने अपने फेसबुक एकाउंट पर इस्लाम का हवाला देते हुए अभिनय छोड़ने का ऐलान किया। जायरा ने बताया कि बॉलीवुड में अभिनय उन्हें अल्लाह और कुरान से दूर ले जा रहा है जिसकी वजह से जायरा बॉलीवुड को अलविदा कह रही है।

जायरा ने अपने ऐलान में अल्लाह और इस्लाम का हवाला दिया तो देश मे राजनीति स्वाभाविक है।

देश के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जायरा ने ये निर्णय निश्चित तौर पर राजनीतिक दवाव में लिया है। अपने करियर के शुरुआती दौर से ही जायरा कश्मीर में राजनीतिक दवाब का शिकार रही है।

वहीं इसके विपक्ष में मुस्लिम संगठनों ने जायरा के इस फैसलो को सही करार देते हुए, मुस्लिम महिलाओं के अभिनय को गैर-इस्लामिक बताया है। समाजवादी पार्टी सांसद एस. टी. हसन महिलाओं के अभिनय को "जिस्म की नुमाइश " बता रहे हैं। मुस्लिम संगठनों के मौलानाओं का दावा है कि मुस्लिम महिलाओं का अभिनय गैर-इस्लामिक है और मुस्लिम मर्दो का अभिनय इस्लाम के अनुसार।

वाह रे! मौलाना साहब आपका इस्लाम तो कमाल है।

तो देश के मौलानाओं से सवाल ये है कि-

अगर आपका इस्लाम मुस्लिम महिलाओं को अभिनय की आजादी नही देता, खेल की आजादी नहीं देता, पत्रकारिता की आजादी नही देता तो मुस्लिम महिलाओं के सामने केवल ये विकल्प रह गया है कि-

"या तो वो हथियार उठा ले या पत्थर ?"

"बेहद चिंता का विषय है कि देश की एक मुस्लिम महिला जब जैन धर्म मे विवाहित होकर संसद में पहुँचती है और देश के सम्मान में"वन्दे मातरम" बोलती है तो बड़े आसानी से इस्लाम के नुमाइंदे उन्हें गैर-मुसलमान बता देते हैं।इस देश में इस्लाम और इस्लाम के नुमाइंदो को ये तय करना होगा कि इस देश मे सच्चा मुसलमान "अफजल गुरु" है या "नुसरत जहां"।

इस देश के मौलानाओं को "हलाला" इस्लामिक लगता है, "तीन तलाक" इस्लामिक लगता है मगर "मुस्लिम महिलाओं का अभिनय" और "वन्दे मातरम " इन्हें गैर-इस्लामिक लगता है।

"गजब है मौलाना साहब, और गजब है आपका स्वनिर्मित इस्लाम"।

इस देश में मुसलमानों और अल्लाह के बीच किसी तीसरे की आवश्यकता समझ मे नही आती। मुसलमान अपना इस्लाम और अल्लाह का कुरान खुद समझ सकते है, उन्हें किसी मौलवी या मौलाना की जरूरत नहीं।

अगर ऐसा कुछ इस देश मे होता तो जायरा वसीम इस्लाम के डर से अभिनय नहीं छोड़ती,

वरना 18 साल की बच्ची को इस्लाम और कुरान की इतनी समझ कहां ?

निशान्त जायसवाल

विद्युत अभियांत्रिकी प्रथम वर्ष

आई०ई०टी० लखनऊक

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