इन दिनों देश का मिजाज कुछ इस तरह है कि हर कोई देश की राजनीति में रंगारंग है, लोगों के ऊपर चुनावी बुखार इस तरह चढ़ा है कि आपहर तीसरे व्यक्ति को चुनावी चर्चा करते हुए देख सकते है। देश की राजनीति ने अपने आप मे एक अलग ही तस्वीर बना ली है। इन दिनों आपको राजनेताओं में एक अलग प्रकार की प्रतिस्पर्धा देखने को मिलेगा, और यह प्रतिस्पर्धा है एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का, और आजकल राजनेताओं ने इसे अपनी राजनीति का प्रमुख अस्त्र बना लिया है।
मुझे याद है कि जब अंग्रेजी हुकूमत भारत आयी थी तब उसने देश में 'फूट डालो और शासन करो' कि रणनीति का ही पालन करके इस देश पर राज किया था। आज आजादी के 70 साल बाद भी देश मे शासन के लिए यही रणनीति अपनायी जा रही है, आज भी देश के लोगों को धर्म, जाति व सम्प्रदाय के आधार पर बाँटकर वोट मांगे जाते है और जनता उन्हें वोट देकर विजयी भी बनाती है। इस देश की राजनीति एकदम लचक चुकी है, परिवारवाद, जातिवाद और धर्म की राजनीतिने देश की कमर तोड़ रखी है।
आज देश का लोकतंत्र इतना अकेला पड़ गया है की वो अकेले चुनाव लड़ने के योग्य नही है जहां देश मे एक तरफ 40 छोटे बड़े दलो से संगठित भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली NDA है वही दूसरी ओर एक व्यक्ति विशेष के नेतृत्व को हटाने के लिए समस्त विपक्षी दलों का महागठबंधन है। एक ऐसा महागठबंधन जिसका ना तो कोई नेतृत्व है और ना ही कोई विचारधारा। जो दल कल तक एक दूसरे को फूटे आँख नही भाते थे वो आज एक दूसरे के नैनो के तारे बने हुए है। जो कल तक एक दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगाते थे वो आज एक दूसरे के बचाव में खड़े हो रहे है। सत्ता की चाह में नेता इतना अंधा हो गया है कि मानो उनके और उनके परिवार के हित के अलावा उसे और कुछ नही समझ आ रहा हो। और जहाँ तक बात है देश के भविष्य की तो मानो राजनेताओं के लिए ये सिर्फ एक चुनावी वादा रह गयाआज देश मे राजनेताओं के पास कोई मुद्दा नही है, बेबुनियादी बातों पर चर्चा कर रहे है जिसका ना कोई आकलन है और ना ही कोई समीक्षा। दुखी हो जाता हूं जब कोई नेता, भारत के वीरो की शहादत पर राजनीति करता है, दुखी हो जाता हूं जब कोई नेता इस देश के गरीब किसान पर राजनीति करता है। यहां मझे राहत इंदौरी साहब का एक शेर याद आता है -सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो देश में चुनाव है क्या?
परंतु इन सब बातों का जो निष्कर्ष है वो है कि -
2019 का यह आम चुनाव परिवारवाद बनाम लोकतंत्र का है, आतंकवाद बनाम सर्जीकल स्ट्राइक का है, चौकीदार बनाम चोर का है, जुमला बनाम वादों का है, गरीब माँ के बेटे बनाम राजकुमार का है ,यह चुनाव NDA बनाम महागठबंधन का है। तय आपको करनाहै कि आप अपना नेतृत्व किसे सौपेंगे? इस बार हिंदुस्तान की जनता को सत्ता में बराबर का हकदार बनना होगा, आपको पूछना होगा आपके क्षेत्र के सांसद प्रत्यासी से की आपके सरकार ने अब तक शिक्षा के लिए क्या किया है, रोजगार के लिए क्या किया है , किसानों के लिए क्या किया है , महिलाओं के लिए क्या किया है? और विपक्षी दल के नेता से भी पूछिये की आपकी सरकार आएगी तो इन प्रश्नों का जवाब क्या होगा ?जो नेता इन मुद्दों पर चर्चा करे , तर्क करे उन्हें चुनिए।आगामी लोकतंत्र केइस महापर्व का हिस्सा बनिये, अपने मताधिकार को समझिये,मतदान के दिन पोलिंग बूथ पर जाइये और इस बार धर्म,जाति और संप्रदाय से हटकर उस प्रत्याशी को वोट करिये जो अपने और अपने के बजाय आपके और आपके परिवार के भविष्य की चिंता करे , इस बार के चुनाव में सही मायनों में नेता चुनिए ।