पसंद न करना
बुरा मानना
Being stingy towards you. And when fear approaches, you see them staring at you—their eyes rolling—like someone fainting at death. Then, when panic is over, they whip you with sharp tongues. They resent you any good. These have never believed, so God has nullified their works ; a matter easy for God.
और चल दिए और जब कोई ख़ौफ आ पड़ा तो देखते हो कि तुम्हारी तरफ देखते हैं उनकी ऑंखें इस तरह घूमती हैं जैसे किसी शख्स पर मौत की बेहोशी छा जाए फिर वह ख़ौफ जाता रहा और ईमानदारों की फतेह हुई तो माले पर गिरते पड़ते फौरन तुम पर अपनी तेज़ ज़बानों से ताना कसने लगे ये लोग से ईमान ही नहीं लाए तो खुदा ने भी इनका किया कराया सब अकारत कर दिया और ये तो खुदा के वास्ते एक आसान बात थी
Say, “ O People of the Scripture! Do you resent us only because we believe in God, and in what was revealed to us, and in what was revealed previously ; and most of you are sinners ? ”
आख़िर तुम हमसे इसके सिवा और क्या ऐब लगा सकते हो कि हम ख़ुदा पर और जो हमारे पास भेजी गयी है और जो हमसे पहले भेजी गयी ईमान लाए हैं और ये तुममें के अक्सर बदकार हैं
Say," People of the Book! Do you resent us only because we believe in God and in what has been revealed to us and to others before, and because most of you are disobedient ?"
आख़िर तुम हमसे इसके सिवा और क्या ऐब लगा सकते हो कि हम ख़ुदा पर और जो हमारे पास भेजी गयी है और जो हमसे पहले भेजी गयी ईमान लाए हैं और ये तुममें के अक्सर बदकार हैं
Being stingy towards you. And when fear approaches, you see them staring at you—their eyes rolling—like someone fainting at death. Then, when panic is over, they whip you with sharp tongues. They resent you any good. These have never believed, so God has nullified their works ; a matter easy for God.
तुम्हारे साथ कृपणता से काम लेते है । अतः जब भय का समय आ जाता है, तो तुम उन्हें देखते हो कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार ताक रहे कि उनकी आँखें चक्कर खा रही है, जैसे किसी व्यक्ति पर मौत की बेहोशी छा रही हो । किन्तु जब भय जाता रहता है तो वे माल के लोभ में तेज़ ज़बाने तुमपर चलाते है । ऐसे लोग ईमान लाए ही नहीं । अतः अल्लाह ने उनके कर्म उनकी जान को लागू कर दिए । और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है
Say," O People of the Scripture, do you resent us except that we have believed in Allah and what was revealed to us and what was revealed before and because most of you are defiantly disobedient ?"
आख़िर तुम हमसे इसके सिवा और क्या ऐब लगा सकते हो कि हम ख़ुदा पर और जो हमारे पास भेजी गयी है और जो हमसे पहले भेजी गयी ईमान लाए हैं और ये तुममें के अक्सर बदकार हैं
I do not accept the premise of this question ; I would ask “ Why does the world resent America ? ” A country that is truly hated would not be under seige from illegal immigration, its popular culture would not dominate, and its model of government and economy increasingly emulated. But accepting your question as posed, it suggests that the United States finds itself in a position comparable to the Arab oil sheikhs of the 1970s and Japan during the 1980s. This points to an answer: in each of these three cases, the offending party enjoyed a power that others perceived as overweeining, somewhat illegitimate, and threatening.
मैं इस प्रश्न का उत्तर स्वीकार करने से पहले प्रश्न में प्रश्न करना पसंद करूगा, क्यों अमेरिका को लेकर परेशान हैं, अगर अमेरिका से लोगों को घृणा होती तो सबसे ज्यादा अप्रवासी यहाँ सभ्यता के बीच लोकप्रिय अपने को दृढ़ता के साथ महसूस नहीं कर पाते । आपके प्रश्न को स्वीकारते हुए यह कहना चाहूँगा की अमेरिका का यह अपने आप में सफलता का परिचायक है कि इसकी तुलना 1970 के तेल के अरब शेखों और 1980 के आर्थिक तौर पर उभरता जापान से कर रहे हैं ।
The Kingdom of Saudi Arabia is no ordinary state. Its power lies in a unique combination of Wahhabi doctrine, control over Mecca and Medina, and oil and gas reserves. In addition, its leaders boast an exceptional record of outside - the - box policies. Still, geographical, ideological, and personnel differences among Saudis could cause its fall ; the key would then be to whom. Shi ' ites who resent their second - class status and would presumably move the country towards Iran ? Purist Wahhabis, who scorn the monarchical adaptations to modernity and would replicate the Taliban order in Afghanistan ? Or both in the case of a split ? Or perhaps liberals, hitherto a negligible force, who find their voice and lead an overthrow of the antiquated, corrupt, extremist Saudi order ?
सउदी अरब का राज्य कोई सामान्य राज्य नहीं है । इसकी शक्ति वहाबी सिद्धांत. मक्का मदीना पर नियन्त्रण तथा गैस और तेल के संचितों के अद्भुत समन्वय पर आधारित है । इसके अतिरिक्त इसके नेता अप्रत्याशित नीतियों के अनुसार पूर्व में भी चलने का दावा करते रहे हैं । लेकिन इसके बाद भी भौगोलिक, वैचारिक तथा व्यक्तिगत मतभेद सउदी पतन का कारण बन सकते है, प्रमुख प्रश्न तब होगा कि किस ओर ? शिया जो कि अपनी द्वितीय श्रेणी की नागरिकता से विद्रोह की स्थिति में हैं वे देश को सम्भवतः ईरान की ओर मोड देंगे ? शुद्धतावादी वहाबी जो कि राजशाही में आधुनिकता के विरोधी हैं वे अफगानिस्तान की तालिबान व्यवस्था को संस्करण लायेंग़े ? या फिर दोनों में विभाजन की स्थिति होगी ? या फिर सम्भवतः उदारवादी जो कि नगण्य है वे अपनी आवाज बुलंद कर सकेंगे और पुरानी, भ्रष्ट और अतिवादी सउदी व्यवस्था को उख़ाड सकेंगे ?
If only because it has not helped the Muslims, who remain mostly poor and illiterate, and it has not helped the Hindus who resent being forced to negate their own civilisation and culture in the name of secularism.
वजह यह कि इससे न तो मुसलमानों का फायदा हा, जो ज्यादातर गरीब और अनपढे बने हे हैं ; और न यह हिंदुओं के काम आई, जो सेकुलरवाद के नाम पर अपनी सयता - संस्कृति को अमान्य किए जाने से क्षुध हैं.
In fact, no individual or government which is anxious of achievement can resent criticism because that is one of the ways of finding out our shortcomings or mistakesand we have never said that we are immune from making mistakes.
वास्तव में कोई भी व्यक्ति या सरकार, जो कोई उपलब्धि करना चाहती है, आलोचना से क्षुब्ध नहीं होती क्योंकि यह अपनी कमी या गलतियों की जानकारी पाने का एक तरीका होता है - और हमने कभी नहीं कहा है कि हमसे कोई गलती नहीं हो सकती ।
People did resent the fact that a handful of foreigners were ruling the millions of Indians ; at the same time, they were grateful also, because the rule had established order and peace in place of anarchy.
जनता में इस बात पर रोष था कि मुट्ठी भर विदेशी करोड़ों भारतीयों पर शासन कर रहे थे, लेकिन साथ ही वे इस बात के लिए कृतज्ञ भी थे कि उनके शासन में अराजकता के स्थान पर व्यवस्था और शांति की स्थापना हुई ।