नियम
अभिषेक
अध्यादेश
Ordination
In October 1993 two Election Commissioners were appointed and by an ordinance given the same position and status as the Chief Election Commissioner.
अक्टूबर, 1993 में एक अध्यादेश के द्वासरा दो निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किये गये थे, जिन्हें वही स्थिति तथा हैसियत प्रदान की गई थाी, जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त को प्राप्त थी ।
. Article 123 gives power to th President to pass an ordinance this is done when the president is satisfied that there is a need fro immediate action and one or both the houses of the parliament are not in session then he can pass an ordinance such ordinance loses its power in 6 months from the restart of the sessions of the parliament however if both the houses accept it then it will be in effect
अनु 123 राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है यह तब जारी होगा जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाये कि परिस्थितियाँ ऐसी हो कि तुरंत कार्यवाही करने की जरूरत है तथा संसद का 1 या दोनॉ सदन सत्र मे नही है तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है यह अध्यादेश संसद के पुनसत्र के 6 सप्ताह के भीतर अपना प्रभाव खो देगा यधपि दोनो सदनॉ द्वारा स्वीकृति देने पर यह जारी रहेगा
And for you is half of what your wives leave if they have no child. But if they have a child, for you is one fourth of what they leave, after any bequest they made or debt. And for the wives is one fourth if you leave no child. But if you leave a child, then for them is an eighth of what you leave, after any bequest you made or debt. And if a man or woman leaves neither ascendants nor descendants but has a brother or a sister, then for each one of them is a sixth. But if they are more than two, they share a third, after any bequest which was made or debt, as long as there is no detriment. an ordinance from Allah, and Allah is Knowing and Forbearing.
और जो कुछ तुम्हारी बीवियां छोड़ कर जाए पस अगर उनके कोई औलाद न हो तो तुम्हारा आधा है और अगर उनके कोई औलाद हो तो जो कुछ वह तरका छोड़े उसमें से बाज़ चीज़ों में चौथाई तुम्हारा है औरत ने जिसकी वसीयत की हो और क़र्ज़ के बाद अगर तुम्हारे कोई औलाद न हो तो तुम्हारे तरके में से तुम्हारी बीवियों का बाज़ चीज़ों में चौथाई है और अगर तुम्हारी कोई औलाद हो तो तुम्हारे तर्के में से उनका ख़ास चीज़ों में आठवॉ हिस्सा है तुमने जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तामील और क़र्ज़ के बाद और अगर कोई मर्द या औरत अपनी मादरजिलों भाई या बहन को वारिस छोड़े तो उनमें से हर एक का ख़ास चीजों में छठा हिस्सा है और अगर उससे ज्यादा हो तो सबके सब एक ख़ास तिहाई में शरीक़ रहेंगे और मय्यत ने जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तामील और क़र्ज क़े बाद मगर हॉ वह वसीयत नुक्सान पहुंचाने वाली न हो ये वसीयत ख़ुदा की तरफ़ से है और ख़ुदा तो हर चीज़ का जानने वाला और बुर्दबार है
And those who afterwards believed and left their homes and strove along with you, they are of you ; and those who are akin are nearer one to another in the ordinance of Allah. Lo! Allah is Knower of all things.
और जो लोग बाद में ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया तो ऐसे लोग भी तुम में ही से हैं । किन्तु अल्लाह की किताब मे ख़ून के रिश्तेदार एक - दूसरे के ज़्यादा हक़दार है । निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है
President is having power to proclaim ordinance under article 123, it can be done when the President is satisfied that the circumstances call for immediate action as both the Houses of Parliament are not in session, then he can proclaim the ordinance. This ordinance, the Parliament within 6 weeks of the commencement of the session should take it up for its consideration and will continue to be effective if it is approved by both the Houses.
अनु 123 राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है यह तब जारी होगा जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाये कि परिस्थितियाँ ऐसी हो कि तुरंत कार्यवाही करने की जरूरत है तथा संसद का 1 या दोनॉ सदन सत्र मे नही है तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है यह अध्यादेश संसद के पुनसत्र के 6 सप्ताह के भीतर अपना प्रभाव खो देगा यधपि दोनो सदनॉ द्वारा स्वीकृति देने पर यह जारी रहेगा
It is true that ordinance XV - B does not prescribe the procedure which is to be adopted to conduct the enquiry.
यह सच है कि अध्यादेश XV - बी, जांच का संचालन करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जानी है, उसे विहित नहीं करता है.
Along with it was proclaimed an ordinance for arrest and imprisonment without trial.
उसके साथ - साथ ही बिना मुकदमे के गिरफ्तारी और जेल में बंद करने का विधेयक भी घोषित कर दिया गया ।
1. Every promulgated ordinance has to be passed in both the houses of the parliament in 6 weeks after the start of their sessions in this manner any ordinance without the passing in the parliament cannot survive beyond 6 months + 6 weeks
1. प्रत्येक जारी किया हुआ अध्यादेश संसद के दोनो सदनो द्वारा उनके सत्र शुरु होने के 6 हफ्ते के भीतर स्वीकृत करवाना होगा इस प्रकार कोई अध्यादेश संसद की स्वीकृति के बिना 6 मास + 6 सप्ताह से अधिक नही चल सकता है
. This power is also subject to review by the Court but the obligation to prove the misuse of this power or malafides is on the person who is challenging it after promulgaion of ordinance ending the Parliament is also in good custom because necessity for ordinance is immediate whereas Parlianment takes time to pass any statute We can consider the ordinance a temporary legislation which is under the Constitutional powers of the President but also the Government can do it with the advice of the Council of Ministers if the parliament rejects any ordinance any time, even after its expiration the actions taken within the period of validity are not considered unconstitutional.
यह शक्ति भी न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण की पात्र है किंतु शक्ति के गलत प्रयोग या दुर्भावना को सिद्ध करने का कार्य उस व्यक्ति पे होगा जो इसे चुनौती दे अध्यादेश जारी करने हेतु संसद का सत्रावसान करना भी उचित हो सकता है क्यॉकि अध्यादेश की जरूरत तुरंत हो सकती है जबकि संसद कोई भी अधिनियम पारित करने मे समय लेती है अध्यादेश को हम अस्थाई विधि मान सकते है यह राष्ट्रपति की विधायिका शक्ति के अन्दर आता है न कि कार्यपालिका वैसे ये कार्य भी वह मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है यदि कभी संसद किसी अध्यादेश को अस्वीकार दे तो वह नष्ट भले ही हो जाये किंतु उसके अंतर्गत किये गये कार्य अवैधानिक नही हो जाते है
So in July 1988, the government passed an ordinance which gave legal powers to the enforcement department to arrest a person for up to two years on charges of suspicion.
इसलिए जुलाई 1988 में सरकार ने एक अध्यादेश पारित कर प्रवर्तन विभाग को यह कानूनी अधिकार दे दिया कि वे किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर दो साल तक जेल में बंद रख सकते हैं ।