क्यों न भगत सिंह के सपने जैसा रहने दिया जाए,
ये देश आज़ाद है इसे आज़ाद ही रहने दिया जाए।
यु हरे और केसरी को धर्मो में न बाँटा जाए,
क्यों न इन्हें मिलाकर फिर तिरंगा बनाया जाए।
क्यों न मंदिर और मस्जिद के फांसलो को मिटाया जाए,
ये खुदा के घर है इन्हें खुदा का ही रहने दिया जाए।
क्यों न जात-पात से थोड़ा ऊपर उठ जाया जाए,
हमें इंसान बनाया है तो इंसान बनकर ही रहा जाए ।
क्यों न आपसी रंजिशों को यंही खत्म किया जाए,
अपनी पीढ़ियों को मोहब्बत के साए में पलने दिया जाए।
क्यों न मुश्किलो से मिली आज़ादी को बरकरार रखा जाए,
चलो सोने की चिड़िया को फिर से सोने में बदला जाए।
क्यों न इस चिड़िया को फिर से उड़ने दिया जाए,
चलो मोहब्बत से मिलकर इसे फिर से पंख दिए जाए।
क्यों न भगत सिंह के सपने जैसा रहने दिया जाए,
ये देश आज़ाद है इसे आज़ाद ही रहने दिया जाए।