मोहब्बत का सिला कुछ यूं दे गई मुझे
दर्द ही दर्द मिला न जाने मैंने क्या ख़ता की थी।
मिला था मुझसे आज वो अनजाना बनकर
जिसको जानने में मैंने जिंदगी बिता दी थी।
उसके ख़ुश रहने के लिए क्या क्या न किया
सारे काम छोड़कर मैंने नमाज़ अदा की थी।
सलामत रहे सदा वो जान थी मेरी
खुद को छोड़ मैंने उसके लिए दुआ की थी।
शुभम पाठक