तेरा वो हल्का सा मुस्काना
हर एक बात पे शरमाना
कहना रहता था कुछ और,
जान कर , कुछ और कह जाना।
सब झूठा था
वो मासूम सा चेहरा बनाना
उसपे एक हल्का सा अदब लाना
मुझे किसी और के साथ देख,
तेरे चेहरे पर वो गुस्सा आना
सब झूठा था
मुझे हर बात पे समझाना
बुरी संगत से मुझे बचाना
इश्क़ का वो पाठ पढाना
ना सीखने पर चिल्लाना
सब झूठा था।
उदास होने पर हिम्मत जगाना
मेरी ताकत को फिरसे बताना
साथ जीने के सपने दिखाना
साथ मरने की क़समें खाना
सब झूठा था।
शुभम पाठक