सरदर्द हुआ ज़रा सा तो क्या पढ़ना छोड़ दूँ
थक गया ज़रा सा तो क्या चलना छोड़ दूँ
मानता हूँ इन दिनों तकलीफ़े बहुत है
परेशान होकर जिंदगी से क्या लड़ना छोड़ दूँ।
जिस जगह से कई यादें जुड़ी है क्या उस जगह पर ठहरना छोड़ दूँ
मंज़िल तो दूर है अभी क्या उसकी ओर बढ़ना छोड़ दूं
कई बार असफल हो चुका हूँ, मानता हूं मैं
तो क्या अब डर करके प्रयास करना छोड़ दूं।
शुभम पाठक