वो अब हमसे बात ही नही करते

हमारी आवाज़ को बर्दाश्त ही नही करते

प्यार करना तो अब बहुत दूर की बात

शायद अब वो हमें याद ही नही करते।

टूट के चाहने लगे थे हम उन्हें

रूठ जाने पर मनाने लगे थे हम उन्हें

ना जाने क्या ख़ता हो गयी हमसे,ऐ खुदा

कि वो अब हमसे कोई फ़रियाद ही नहीं करते।

मेरी गजलें जो कभी सुन के सोया करते थे

उन्ही में गुम होके छुप छुप के रोया करते थे

उन्हें गजल से कुछ इस तरह नफरत सी हो गयी

कि अब हमारे बोलने पर वो इरशाद ही नही करते।

शुभम पाठक

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