मोहब्बत की थी तुमसे तो मोहब्बत जारी रहेगी
हुई मुझकों थी जो बीमारी वो बीमारी रहेगी।
तुम्हें जाना हो जहाँ जाओ अब, बेख़ौफ़ होकरके
तुम्हारी भी हिफ़ाज़त, मेरी जिम्मेदारी रहेगी।
भला हम हार मानना चाहें भी तो मान लें कैसे,
तुम आख़िर जंग हो मेरी और ये जंग जारी रहेगी।
मेंरे ख़्वाबों के गलियारे में,कभी आकरके तुम देखो
जिधर भी जाओगे तुम, वहीं पे ख़ातिरदारी रहेगी।
तुम्हें मिल जाये ग़र कोई तो बेशक़ उसकी हो जाना
मेरे नजऱ में तो हाँ तू ही सबसे प्यारी रहेगी।
आज़माना चाहो तो कभी आज़माकर देख लो
तुम्हारे नफरत पर मेरी ये चाहत भारी रहेगी।
शुभम पाठक