पूंछते हैं हमसे की तुम बदले बदले क्यो हो
इल्जाम देके उन्हें रुस्वा करूँ भी तो कैसे
वो मेरे नही हैं ना होंगें भी शायद
ये बात अपनें दिल मे भरूँ भी तो कैसे।
हर पल उनके बिन सूना सा है अब तो,
इस तन्हाई में आखिर जियूँ भी तो कैसे
कहता हूँ खुद से, कि बस कर अब रुक जा
बिन इजाजत उनके मैं, मरूँ भी तो कैसे।
शुभम पाठक