हर पल हर दिन न चाह के भी मैंने तेरी हर बात मानी है
बिना किये हुए भी कोई गलती मांगी मैंने माफी है
अब इससे ज्यादा भी और कोई कर सके तो बताना
मेरी शिद्दत तो इतनी ही थी मेरे हिसाब से तो इतना ही काफी है।
तू मेरे लिए तो जरूरी है पर मेरे लिए तेरे पास वक़्त ही कहाँ
तेरे मन का तेरे पसंद का तो शायद मिल गया तेरा जहाँ
हार मान कर समझा समझा के बैठ गया अब मैं थककर
तू तो आगे बढ़ गयी मैं रह गया वहीं था मैं कभी जहाँ ।
शुभम पाठक