क्यों पूजते हो फ़िर देवियों की तरह
जब जानवरो की तरह व्यवहार करते हो ।
क्यों कहते हो पूज्यनीय उन्हें
जब उन का तुम व्यापार करते हो ।
क्यों कहते हो लक्ष्मी का रूप
जब चरित्र ही दाग़दार करते हो ।
क्यों कहते हो नारी को देवी
जब उसपर हर घड़ी प्रहार करते हो ।
क्यों कहते हो घर की इज्जत
जब बेइज्जत सरे-बाज़ार करते हो ।
क्यों करते हो घिंनौनी हरकत फिरसे
जब न दोहराने की बात हर बार करते हो ।
शुभम पाठक