मैं एक छोटा सा ख़्वाब नहीं भूल पाता
न जाने लोग कैसे मोहब्बत भुला लेते हैं।
पहले तो कहते है कि मिलने मत आना मुझसे
फिर जानबूझकर अपने सपने में बुला लेते हैं।
उनका जब मन होता है तो खुद हँस लेते हैं
और जब मन होता है तो मुझे रुला लेते है।
जब भी मुझे रुलाने का ख्वाब आता है उन्हें
किस गैर को अपने जुल्फों में सुला लेते है।
कुछ कर दिखाने की चाह जिनमें भी होती है
अपने सीने में वो एक आग जला लेते हैं।
शुभम पाठक