उन आँखों मे अजब सी एक आस दिखती है
दूर होकर भी न जाने क्यों वो पास दिखती है
जमाने के सामने तो हसीन चेहरा है उसका अब भी
मुझसे बिछड़ने के बाद पर वो उदास दिखती है।
बिछड़कर मुश्किल हो जाता है मिलना, धीरे धीरे
टूट कर मुश्किल हो जाता है जुड़ना धीरे धीरे
और कभी किसी मोड़ पे मिल जाऊंगा शायद मैं उसे
हर पल उसको उस घड़ी की आस रहती है।
शुभम पाठक