आज़मा के देख लिया लोगों ने सब्र मेरा
जो मुझमें था कभी वो इंसान अब मर चुका है।
कभी हवाओं से भी लड़ जाता था जो, बेफिक्र होकर
इस बदलते समाज में वो कुछ कहने तक से डर चुका है।
आज जो दिखाते हैं आँख मुझे, सोचके की डरता हूँ मैं
ये जो करने चले हो अब तुम वो न जाने कब का कर चुका है।
शुभम पाठक