भावनाएं इंसान का आईना होती है। हर एक इंसान दुख और सुख को करता है,किंतु एक वाक्य समाज में बेहद प्रचलित है कि 'मर्द को दर्द नहीं होता'। यह सिर्फ एक वाक्य ही नहीं, अपितु रीत बन चुकी है। हमारे समाज में अक्सर पुरुषों को तन से ही नहीं अपितु मन से भी सुदृढ और मजबूत माना जाता है क्योंकि वे आसानी से रोते नहीं है, अपना दुख प्रकट नहीं करते। अंदर ही अंदर उसको दबा लेते हैं और दिखावा करते हैं कि उनको कुछ दर्द महसूस नहीं हो रहा, इसलिए यह वाक्य म समाज में इतना प्रचलित है, किंतु यह पूर्ण रूप से गलत है।
मर्दों में भी भावनाएं होती है। उन्हे भी दुख और सुख की अनुभूति होती है। वे भी अपना दर्द व्यक्त करते हैं, किंतु कुछ अकेले में बैठ कर, तो कुछ अपने चाहने वाले के साथ। इस वाक्य ने उनको ऐसा बनने पर मजबूर कर दिया है कि वे आसानी से अपना दर्द समाज को नहीं दिखा सकते, किंतु वह भी दुख और दर्द महसूस करते हैं। उनको भी दर्द होता है।
हर इंसान की दुख सहन करने की क्षमता होती है यह क्षमता प्रत्येक व्यक्ति की अलग अलग हो सकती है मर्दों में यह क्षमता सबसे अधिक होती है वह अपने दुख को अंदर ही अंदर लेकर घुटते रहते हैं और जब दर्द ज्यादा बढ़ जाता है तब ही जाकर वह आंसू के रूप में बाहर आता है।यही कारण है कि मर्द कम रोते है, जिससे समाज यह समझ लेता है कि मर्द को दर्द नहीं होता। किंतु जरूरी नहीं जो दिख रहा है वही सत्य हो। कुछ लोग अपना दुख छिपाने में सक्षम होते हैं वह किसी को भनक भी नहीं लगने देते की किसी दुख के अथाह सागर में वह डूबे हुए है।
अतः यह कथन बिल्कुल गलत है कि मर्द को दर्द नहीं होता ,अपितु मर्द को भी दर्द होता है बस उस दर्द को छुपाने की क्षमता उनमें अधिक होती है।