किन्नरो की ज़िंदगी

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Juhi Tomar
Mar 21, 2019   •  62 views

किन्नरों की दुनिया एक अलग ही दुनिया है । हमारे समाज में न ही सिर्फ दो जेंडर होते है बल्कि एक और होता है कहा जा सकता है कि कुल तीन जेंडर होते है । जिसमे से तीसरा भी हमारे समाज का हिस्सा है। इसकी पहचान कुछ ऐसी है जिसे सारे समाज में अच्छी नजऱ से नही देखा जाता । समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर , किन्नर या हिजड़ा के नाम से जाना जाता है।

भारत में किन्नरों को सामाजिक तौर पर बाहिकरष्ट ही कर जाता है । उन्हें समाज से अलग - थलग कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण यह हो सकता है कि न ही उन्हेंपुरुषों में रखा जा सकता है और न ही उन्हें महिलाओं में। यह भी उनके समाज में उनके साथ होने वाले अत्याचार औऱ भेदभाव का प्रमुख कारण हो सकता हैं।

हिंदुस्तान में ही नही पुरे विषय में उनके दिल की बात और आवाज़ कोई सुनना नही चाहता क्योंकि पूरे समाज के लिए इन्हें एक बदनुमा दाग समझा जाता है लोगो के लिए ये एक हँसी मज़ाक का पात्र बन चुका है। समाज न ही इनको शिक्षा प्रदान करता है औरये हमेशा बेरोजगार रहते है भिक मांगने के सिवा उनके पास कोई विकल्प नही रहता ।किन्नरो को अपना जीवन खुद अकेले ही जीना पड़ता है ,इसलिए इनको खुद का पेट भरने के लिए लोगो की शादी ब्याह ओर बच्चे होने पर घरो घरो में जाकर अच्छी दुआएँ देना और नाचना और पेट भरने के लिए झोली फैलाकर पैसा या कपड़े या अन्य मांगना पड़ता है।

जब भी कोई बच्चा होता है और परिवार वाले इस बात से वाकिफ नही होते है कि बच्चा किन्नर है , तब तक लोग उसको अपने दिल का दुलारा समझते है परंतु जैसे जैसे इनकी उम्र बढ़ती है वैसे वैसे इनके व्यवहार में बदलाव नज़र आने लगता है। शरीर भले ही एक लड़के का होगा परंतु उनकी हरकते लड़कियों वाली हो जाती है जैसे कि लिपस्टिक लगाना, साड़ी पहनना , बिंदी लगाना , गुड़ियों के साथ खेलना आदि परंतु इसका मतलब यह तो नही की उन्हें घर से ही बाहर निकाल देना चाहिए या उन्हें अकेले ही सड़क पर छोड़ देना ये गलत है उनको पढ़ना चाहिए और आगे बढ़ने में उनके माता पिता को उनका साथ देना चाहिए। समाज इन बात से वाकिफ है कि जिस तरह पुरुष और औरतों का शरीर ईश्वर के द्वारा बनाई गई है उसी तरह उनके भी शरीर हाव भाव सब ईश्वर की देन है , जिस तरह किन्नर लोगो को अच्छी दुआ देते है उसी तरह समाज को भी किन्नेरो को भी उनके सारे हक और उनको अच्छी नाजरो से देखना चाहिए।

समाज को सोच बदलनी पड़ेगी क्योंकि उनका हक देने की जिम्मेदारी न ही सिर्फ एक व्यक्ति की है बल्कि पूरे समाज वर्ग की है । जिस तरह लोग विद्यालयों में थर्ड जेंडर के कारण उनको दाखिला नही देना ,समाज में किसी भी जगह पर उन्हेंबे -इज़्ज़त करना और उनके साथ गलत काम करना या करवाना ये सब आज की गंदी सोच को दर्शाता हैकिन्नरों पर निजी विधेयक

आज से 4 साल पहलेराज्यसभा ने निजी विधेयक ने पारित किया था- दा राइट्स ऑफ ट्रांसजेंडर्स बिल 2014 जो किन्नरोकी अधिकारों की बात करता था। डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने 2015 में यह विधयेक प्रस्तुत किया था। उस समय यह पुर्व अपोक्षित नही था और उस विधेयक को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफराइट्स )बिल 2016 का पहला वर्जन माना गया । उसीके आधार बनाकर नया विधेयक तैयार किया गया है।

चाहिए।

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Super
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Very nice God
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Thankyou everyone
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Mast
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