ज़िंदगी की हवा में यूँ बहता सा गया ..
कुछ मिलता सा गया ..
कुछ बिछड़ता सा गया ...
बचपन की बातें भी निराली हुआ करती थी
एक वो ही तो वक़्त था जहाँ शामें हुआ करती थी
धीरे धीरे वक़्त बदलता गया
वो शामों का सुकून बिछड़ता गया ...
वो कभी भी साथ न छोड़ने वाले वादे
हालातों के आगे कुछ डगमगा से गए
वो पुराने दोस्त तो अब भी हैं
पर वो दोस्ती के पल धुंधला से गए ...
उस समझदारी की फ़िक्र में हम घुलते गए
उन बेफिक्री के पलों से बिछड़ते गए ..
वो कक्षा की परीक्षा से जो डर जाते थे
आज जिंदगी की परीक्षा में बेख़ौफ़ खड़े हैं
पर ....
इस बेखौफी की राह में वो थक से गए
कदम चलते गए भाव बिछड़ते गए ...
दिन में वो डांट पक्की हुआ करती थी
पर आज तो कोई टोकता भर नहीं
इस ज़िंदगी की दौड़ में गिरते संभलते
उन खट्टी मीठी यादों से बिछड़ते से गए ...
वो बेमतलब सा ..बस जो दिल से था...
उस प्यार की कीमत अब समझ आयी
इसे जताने वाले तो मिलते गए
पर निभाने वाले बिछड़ते गए....