वो शायराना दौर भी ज़रूरी है ...

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Gauri Mangal
Jul 01, 2019   •  54 views
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक.... कौन टिका है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.

ज़िंदगी में एक वो दौर आता ही है जब प्रेम को इतनी खूबसूरती से पेश करने वाले ग़ालिब के कुछ चंद शब्द और शायरियां हमारी अज़ीज़ हो जाती हैं और फिर चाहे रेख्ता हो या रुबाइयाँ हमें सब बखूबी समझ आने लगता है। आता है यह दौर तो हर किसी की ज़िंदगी का एक अभिन्न अंग है जब हम भावनाओं को करीब से महसूस करने लगते हैं ...

इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना... दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना...

यह वो ही दौर है जब दर्द सहने में भी एक अलग मज़ा आने लगता है और आखों का पानी वो होठों की झूठी सी मुस्कराहट पी जाती है। यह ही वो समय है जब हम बातों को बस अपने तक कैसे रखना है यह अच्छी तरह जान लेते है और दुनिया को एक अलग ही ढंग से देखना शुरू कर देते है।

इस वक़्त हम नसीब और किस्मत जैसे थोड़े भारी लफ़्ज़ों से रूबरू होते हैं क्यूंकि यहाँ किसी का होना हमारा नसीब और किसी का न होना हमारी क़िस्मत बन जाता है।

कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वा इज़... पर इतना जानते हैं कल वो जाता था की हम निकले

इस शायराना दौर में ही हम अपनी ज़िंदगी की सबसे ज़्यादा ठोकरें खाकर एक मज़बूत शख्स का रूप लेते हैं जो अब इस फरेबी दुनिया के हर तौर तरीके से वाकिफ है।

ज़रूरी है....

ग़ालिब का दौर भी आना ज़रूरी है, ज़रूरी है हमारी वफाओं को वफ़ा दिलाने के लिए, ज़रूरी है ज़ालिम दुनिया को पहचानने के लिए और ज़रूरी है हमें ज़िंदगी का एक नया पहलू सिखाने के लिए ....

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Thanks Shriya
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Thank you 😊😊
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Vikash  •  4y  •  Reply
Charming one.
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💖💖
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Winnifred Dmonte  •  4y  •  Reply
😍
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Thank you..
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Sonali Singh  •  4y  •  Reply
Nice one