किसी ने का खूब कहा है -
ज़िंदगी में कभी निराश नहीं होते,किस्मत के भरोसे हर काम नहीं होते..
हाथों की लकीरों से न डरना ऐ दोस्त,
किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते ....
क्या है यह किस्मत?? ये हाथों की लकीरें या माथे के तिल या रोज़मर्रा में घटने वाली वो सारी बातें जो कभी हमें रुलाती हैं तो कभी हसा जाती है ?
क्या वाकई में किस्मत होती भी है या नहीं .. अगर है तो हम क्यों ज़िंदगी की दौड़ में भाग रहे है और अगर नहीं है तो क्यों किसी को ज़िंदगी के किसी न किसी मोड़ पर इतनी मेहनत के बावजूद कुछ नहीं मिलता????
इसका जवाब तो अब हमारे विश्वास और सोच पर निर्भर करता है, वो कहते है न "मानो तो पत्थर भी सजीव है और न मानों तो आत्मा भी निर्जीव है """जीवन एक पहेली है ,
कही सीधे रस्ते तो कही मोड़ हैं
बस कदम कदम तुम चलते जाना ,
धैर्य में ही छुपा इसका छोर है ""
यहाँ एक बात जो जीवन के लिए महत्वपूर्ण है वो है कर्म और किस्मत के संतुलन को समझना । किस्मत के भरोसे अगर जीवन में ऐसे ही बैठे रहेंगे तो हमारी सोच पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा, हम जीवन की उन सारी बातों को सीखने से वंचित रह जाएंगे जो ज़िंदगी हमे किसी न किसी मोड़ पर हमारे कर्मो के द्वारा हमें सिखाती है, दूसरी तरफ अगर हम यह सोच कर बैठ जाएंगे कि हम तो कर्म कर ही रहे हैं हमारे साथ कुछ गलत नहीं हो सकता तो यह भी गलत है इससे हमें दुःख के सिवा कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि परिवर्तन जीवन का नियम है और हमें परिवर्तनों को अपनाना चाहिए बस यही किस्मत और कर्म का खेल है, एक भी पहलु गड़बड़ा गया तो आपका जीवन असंतुलित हो जाएगा | इसलिए जीवन में कर्म करते रहिये और और बुरी और अच्छी दोनों ही परिस्थितियों से सीख लीजिये तभी आप जीवन का मज़ा ले पाएंगे ।