*क्यों मेरे दिल में तुम एक राज़ बने बैठे हो..*

*मेरे दिल के कुछ अनकहे अलफ़ाज़ बने बैठे हो..*

*तुम उतर गये हो हमारे दिल के आईने में..*

*मेरी आँखों की रौशनी के तुम सरताज़ बने बैठे हो..*

*एक पल भी हटता नही है मेरे दिल से ख्याल तुम्हारा..*

*मेरी नींदों के भी तुम हमराज़ बने बैठे हो..*

*बहुत दर्द था हमारी ज़िन्दगी में..*

*अब हमारे दिल के दर्द के तुम मरहम और एलाज़ बने बैठे हो..*

*अधूरे से थे हम पहले तनहा कही..*

*अब मेरे जीवन का तुम एक साज़ बने बैठे हो..*

*तुम्हे पता है इस समाज में इश्क मुकम्मल नहीं है हमारा..*

*फिर भी नाउम्मीदी की उम्मीद तुम हमे आज दिए बैठे हो..*

*सोचते है बयां करदें अपने दिल में दबे इस राज़ को सबके सामने..*

*लेकिन पता नहीं क्योंअपनी कसमें- वादों का तुम हमे यूँ रिवाज़ दिए बैठे हो..*

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©Aayushi Dwivedi

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Avnish Srivastava  •  1y  •  Reply
That was a very nice poem. Liked it.