एक हम हैं जो हर पल उनकी फिक्र में रहतें हैं

एक उनका दिल है जो बेफिक्र सा है

मेरा चेहरा खिला खिला सा है आज, लोगों ने कहा,

फ़िज़ा में शायद उनका जिक्र सा है।

कहने को सिर्फ एक महक सी है

पर वास्तव में किसी इत्र सा है

ख़ुशनुमा सा मुझे खुद महसूस हो रहा है

ये रिश्ता जो इतना पवित्र सा है।

चेहरा मासूम सा है आँखे किसी झील सी

एक बढ़ते हुए तूफान के तू चित्र सा है

और जाना तुझे तो पाया बिल्कुल सरल,

तेरा मन तो सीता के चरित्र सा है।

शुभम पाठक

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