'सबकी बात नहीं हैं' कविता एक कर्मचारी का अपने सेठ के व्यवहार पर प्रश्न है जो अपने कर्मचारियों का अलग-अलग तरीके से शोषण करता हैं।
ऐसा नहीं हैं यह सबकी बात हैं,
पर, जिसकी बात हैं वो समझ जायेगें।
सबके सामने मुखर जायेगें,
पर,अपने ही अंदर समझ जायेंगे।
श्रमिकों के गले काटकर ,
धनवान बन जायेगें,
देश- विदेश घूम आयेगें,
मकान-बंगले बना लेंगे,
ऊँची- लम्बी गाड़ियाँ घूमा लेंगे,
पर,सबके सामने मुखर जायेंगे।
श्रमिकों को नीचा दिखाकर,
खुद आसमान सा उठ जायेगें,
इज्जत के बोरे भर लायेगें,
ऊँचा मुँह कर खिल-खिलायेगें,
नामी हस्तियाँ बन जायेगें,
पर,सबके सामने मुखर जायेंगे।
श्रमिकों की मासूम हँसी छीन कर,
खुद का परिवार खुशहाल बनायेगें,
कुल देवी का पाठ करायेगें,
रक्षा स्त्रोत का जाप करायेगें,
दूर-दूर तीर्थों में धोक लगायेगें,
पर, सबके सामने मुखर जायेंगे।
मेरा एक छोटा सा प्रश्न हैं
पर, ऐसा वो कितने दिन कर पायेगें?