जो न आये तो आती ही नही
जो आ गयी तो आसानी से जाती नही
रुक करके फिर मन में बवाल करती है।
यादें भी कितना कमाल करतीं है
मैं मुद्दतों से एक ही रट लगाए बैठा हूँ किसके लिए
एक ही निशाने पर नजरें गड़ाए बैठा हूँ किसकेलिए
वो हर बार मुझसे ये सवाल करतीं है
यादें भी कितना कमाल करती हैं।
पल भर में उसकी याद आ जाती है
न चाह करके भी मुझे रुला जाती है
आकर के मुझे यूँ बेहाल करती है
यादें भी कितना कमाल करतीं है।
अरे कभी तो मुझसे खैरियत पूछ लेती
गलती से ही सही मुझे कभी तो सोच लेती
ये बिलकुल न मेरा ख्याल करती हैं
यादें भी कितना कमाल करतीं है।
शुभम पाठक