उस मासूम की क्या गलती थी
उसके हाथ मे तो स्कूल का बस्ता था,
क्या यही गलती हो गयी उससे
कि आगे एक खाली रस्ता था।
उसने चॉकलेट ले ली तुझसे,
सोचकर की तू एक फ़रिश्ता था,
पर उसको ज़रा भी अंदाजा न था
की तुझमें एक शैतान बसता था ।
वो तो खुशी से घर लौट रही थी अपने
उस दिन भी उसका चेहरा हंसता था,
इक बच्ची तक को भी न छोड़ा तुमने
तुम्हारा ईमान इतना सस्ता था।
शुभम पाठक