पागल था मैं जो पागलो की तरह चाहा उसेउसने भी शायद पागल ही समझ लिया मुझे।
प्यार में उसके कुछ इस तरह धुआँ हुआउसने भी शायद बादल ही समझ लिया मुझे।
उसके अश्क़ों के साथ मैं भी बहने लगा था कभीउसने शायद आँख का काज़ल समझ लिया मुझे।शुभम पाठक